गांव के किनारे एक पुरानी हवेली थी, जिसे लोग "शापित हवेली" कहते थे। कहा जाता था कि वहां रात में अजीब-अजीब आवाजें आती थीं और जो कोई भी उस हवेली में गया, वो कभी वापस नहीं लौटा।
एक दिन, चार दोस्त - रवि, अंशुल, कविता और साक्षी - ने मज़ाक में तय किया कि वे उस हवेली में रात बिताएंगे। सभी ने अपनी-अपनी टॉर्च और कैमरे ले लिए।
पहला कदम हवेली में
हवेली के दरवाजे से ही डर का माहौल महसूस हो रहा था। जाले, टूटी खिड़कियां और सन्नाटा। जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला, एक ठंडी हवा का झोंका आया। अंदर अंधेरा था और फर्श पर धूल की मोटी परत।
अजीब आवाजें और छायाएं
जैसे ही वे अंदर गए, उन्हें किसी के कदमों की आवाज सुनाई दी। पर जब उन्होंने मुड़कर देखा, तो वहां कोई नहीं था। अचानक एक पुरानी घड़ी ने बारह बजने की आवाज की। रवि ने कहा, "यह सब हमारा भ्रम है।" लेकिन तभी एक दरवाजा अपने आप खुल गया।
छत पर छुपा राज़
वे डरते-डरते छत की ओर बढ़े। छत पर एक पुरानी ड्रेस पहने एक औरत खड़ी थी। उसके बाल बिखरे हुए थे और आंखें लाल चमक रही थीं। उसने धीरे-धीरे उनकी ओर देखा और भयानक आवाज में कहा, "तुम लोगों ने यहां आने की हिम्मत कैसे की?"
साक्षी घबराकर पीछे हट गई, लेकिन उसका पैर एक ढीले फर्शबोर्ड में फंस गया। तभी औरत हवा में गायब हो गई। लेकिन हवेली की दीवारों से जोर-जोर से हंसने की आवाज आने लगी।
भागने की कोशिश
सभी डर के मारे भागने लगे, लेकिन जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला, वो दरवाजा जंजीरों से बंधा हुआ था। हवेली के चारों ओर धुंआ-सा भर गया। अचानक, रवि को महसूस हुआ कि कोई उसकी गर्दन को पीछे से पकड़ रहा है।
सूरज की रोशनी से बचाव
पूरी रात उनकी जान पर बन आई, लेकिन जैसे ही सुबह की पहली किरण हवेली में पड़ी, हर चीज शांत हो गई। दरवाजा खुल चुका था। वे सब तेजी से बाहर भागे और कसम खाई कि दोबारा उस हवेली के पास भी नहीं जाएंगे।
लेकिन कहते हैं कि उस रात के बाद रवि का चेहरा हमेशा डरावना बना रहा। और जो भी उससे उसकी हालत पूछता, वह सिर्फ एक ही बात कहता, "उसने मुझे जाने नहीं दिया..."